प्रखर समाजवादी की ठोकर से लहूलुहान समाजवाद !

युवा मुख्यमंत्री के नाम आकाश वत्स की पाती

आपके बारे में आगे कुछ भी लिखने से पहले आपके उस बयान का जिक्र जिसमें आपने कहा था, “मीडिया वाले जबरदस्ती आपमें कमी ढ़ूंढते हैं”. आपका ये सवाल जायज था या गुस्से में ये मुझे नहीं पता लेकिन आपके एक मंत्री के लिए एक पत्रकार कागज के टुकड़े के बराबर है जिसमें वो जब चाहे आग लगा दे. लगा भी दी.

मुझे दुख है, आप जिस 20 करोड़ की आबादी वाले राज्य के मुख्यमंत्री हैं, राममूर्ति वर्मा जैसे लोग उसी राज्य के राज्यमंत्री. आपमें और उसमें फर्क सिर्फ इतना है कि वो पत्रकार को जलाकर मार देता है और आप उन बातों पर अपनी हाथों से मिट्टी डालते हैं. राममूर्ति वर्मा की शिक्षा-दीक्षा कहां से हुई है ये मैं नहीं जानता, जानना भी नहीं चाहता पर आपके लिए तो सुना था कि ऑस्ट्रेलिया के किसी विश्वद्यालय से डिग्री लेकर लौटे हैं जो फर्जी तो कतई नहीं होगी.

आपकी पुलिस ‘मित्र पुलिस’ है, लेकिन श्रीप्रकाश राय जैसे कोतवाल राज्य के किसी भी थाने में रहेंगे तो मित्र पुलिस की मित्रता से हर कोई परहेज करने लगेगा. आपके राज्य में प्रशासन चुस्त है ये मुझे तब लगा जब राज्यमंत्री पर धारा-302 के तहत मुकदमा दर्ज हो गया लेकिन चुस्त से ज्यादा अस्वस्थ है ये तब पता चला जब 80 घंटे बाद भी आरोपी राज्यमंत्री लखनऊ के मलीहाबाद में बैठकर दशहरी आम के मजे ले रहा है और पुलिस उसके पास फटक तक नहीं रही है.

मुझे हमेशा से आप और आपके प्यारे अंकल प्रो. रामगोपाल यादव कुछ कर दिखाने वाले लगे . राज्य के लिए, राज्य के लोगों के लिए और भविष्य में पार्टी के लिए भी लेकिन आपके अंकल का कानूनी ज्ञान बेसन के बिस्किट से भी कमजोर होगा ये भी नहीं पता था.

कानून के बारे में रत्तीभर जानकारी रखने वाला कोई भी जानकार बता सकता है कि धारा-302 के तहत मुकदमा दर्ज होने के बाद आरोपी को सबसे पहले गिरफ्तार किया जाता है या पुलिस इस प्रयास में जुट जाती है. मामले की गंभीरता को देखकर आपने एक बैठक बुला ली. डैडी के आवास पर हुई बैठक पार्टी की कम और पापा-चाचा-भतीजा की ज्यादा लगी, कोई बात नहीं. बाहर उम्मीद में बैठे पत्रकारों को भी ये उम्मीद नहीं थी कि बैठक के बाद प्रोफेसर साहब ‘गुरु गुड़, चेला चीनी’ टाइप ज्ञान उड़ेल कर चले जाएंगे. ख़ैर, वो ज्ञान देकर चले गए.

मेरी स्मृति में कुछ पुरानी बातें भी आती है लेकिन भूत की चर्चा करेंगे तो भविष्य में आप पर और भी सवाल उठेंगे. वैसे, मेरे जैसे पत्रकारिता के कमजोर छात्र का मन इस घटना के बाद से पत्थर जैसा मजबूत हो गया है. 2012 की बात है, दिसबंर का महीना, इलाहाबाद रेलवे स्टेशन पर एक पागल सा दिखने वाला इंसान जोर-जोर से चिल्ला रहा था इस प्रदेश में साढ़े 5 मुख्यमंत्री हैं और उसमें अखिलेश का स्थान आधा है. उस पागल से दिखने वाले इंसान की तलाश आज मुझे सबसे ज्यादा है पर कुछ बंधनों के कारण मैं तुरंत इलाहाबाद नहीं निकल सकता.

2012 में आपकी राजनीतिक रोचकता और राज्य को बदलकर रख देने की दिख रही जिद्द को देखकर यूपी के कई हजार युवाओं को लगा होगा कि राजनीति बहुत तेजी से बदल रही है. अखिलेश भैया, समाजवाद इतना कठोर कभी नहीं था. आज आपके चाचा, पापा, भाई, बंधुओं की ठोकर से टकराता हुआ समाजवाद अपना एक सुरक्षित स्थान ढूंढना चाहता है. लेकिन आप बहुमत से सरकार में हैं इसीलिए इसे बदलने के लिए कम से कम 2017 तक तो इंतजार करना ही पड़ेगा.

कुछ लोग आपके ऊपर तब भी सवाल खड़े कर रहे थे जब सैफई में आप समंदर किनारे वाले शहर से आए कलाकारों की कद्रदानी में जुटे थे. उस रंगीन शाम की ठीक अगली उदास सुबह आप तमतमाए हुए से दिखे, पत्रकारों को जमकर डांट रहे थे आप, कुछ देर के लिए लगा कि आप पत्रकारिता भी करते तो फेल नहीं होते. आज कहते हुए डर रहा हूं ठीक वैसे ही जैसे दुनिया से जाने से चंद दिन पहले तक जगेंद्र डर रहा था, आप राममूर्ति वर्मा जैसे राज्यमंत्री के मुख्यमंत्री लायक नहीं हैं.

One thought on “प्रखर समाजवादी की ठोकर से लहूलुहान समाजवाद !

  1. Poonam June 13, 2015 / 7:25 AM

    बहुत तर्कसंगत लिखा है आकाश….. लेकिन क्या इसे अखिलेश भैय्या पढ़ सकेंगे और यदि गलती से पढ़ ही लिया तो क्या चुल्लू भर पानी मिल ही जायेगा उन्हें डूबकर मरने के लिए और इस पर भी यदि ऐसा हो ही गया तो क्या वो डूबकर मर ही जायेंगे, सम्भवतः नहीं क्योंकि इतनी शर्म तो उन्हें आने वाली नही…. मगर उन्हें यह कतई नही भूलना चाहिए कि इतिहास साक्षी है कि जब – जब किसी आताताई ने कोई कहर बरपाया है तब – तब उसे मुँह की खानी पड़ी है…

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